Monday, 20 October 2008
बेवफा
आज मैं बहुत खुश हूँ। इतने अरसे बाद आज मैंने उसे देखा है अपने परिवार के साथ ,पूर्ण रूप से समर्पित एक गरिमामय नारी के रूप में।
ओह ! आज मैं सोचता हूँ कि मैंने क्या खोया और क्या पाया ? ज़िन्दगी के इस मुकाम पर आ कर जब सब स्थिर सा हो गया है , सब कुछ एक निश्चित
ढर्रे पर चल रहा है तो याद आते हैं वो क्षण जब मैं हताश था .वो दिन संघर्ष के थे , निराशा के थे । ज़रा सी सहानुभूति भी मुझे अपनी ओर खींच लेती थी और मैं हर उस दिशा में मुड जाता था जहाँ कोई मेरी पीड़ा समझने का दावा करता था।
वही वो वक्त था जब मैं उसकी ओर आकर्षित हुआ। उसने मुझे बहुत हिम्मत दी थी , बहुत सहारा दिया था यहाँ तक कि टूट कर चाहा था मुझे और मैंने भी बेपनाह मुहब्बत की थी पर हमारे रिश्ते का न कोई भविष्य था न ही कोई मंजिल । दोनों ही अपने दायरे में बंधे थे क्यों कि वो विवाहिता थी।
ओह ! आज मैं सोचता हूँ कि मैंने क्या खोया और क्या पाया ? ज़िन्दगी के इस मुकाम पर आ कर जब सब स्थिर सा हो गया है , सब कुछ एक निश्चित
ढर्रे पर चल रहा है तो याद आते हैं वो क्षण जब मैं हताश था .वो दिन संघर्ष के थे , निराशा के थे । ज़रा सी सहानुभूति भी मुझे अपनी ओर खींच लेती थी और मैं हर उस दिशा में मुड जाता था जहाँ कोई मेरी पीड़ा समझने का दावा करता था।
वही वो वक्त था जब मैं उसकी ओर आकर्षित हुआ। उसने मुझे बहुत हिम्मत दी थी , बहुत सहारा दिया था यहाँ तक कि टूट कर चाहा था मुझे और मैंने भी बेपनाह मुहब्बत की थी पर हमारे रिश्ते का न कोई भविष्य था न ही कोई मंजिल । दोनों ही अपने दायरे में बंधे थे क्यों कि वो विवाहिता थी।
मैं इसी ऊहापोह में अपने भविष्य की तलाश में चला आया बहुत दूर , वापस न लौटने के लिए , ये सोच कर कि यदि मैं उसे खुश देखना चाहता हूँ तो मुझे उसकी ज़िन्दगी से दूर जाना ही होगा । और मैं अपने माथे पर बेवफा का दाग ले कर चला आया था उसकी ज़िन्दगी से दूर बहुत दूर.............
साभार ----संगीता स्वरुप जी उत्कृष्ट रचना है हम आभारी है उनके